UPNAYAN SANSKAR/ उपनयन संस्कार

हिंदू धर्मों के 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है उपनयन संस्कार।.

उपनयन संस्कार में मुख्य कर्म यज्ञोपवीत का धारण करना है ।यज्ञोपवीत का धारण करना गृह्य सूत्रों के अनुसार ब्राह्मण बालक का आठवें वर्ष में ,क्षत्रिय का ग्यारहवें वर्ष में तथा वैश्य का बारहवें वर्ष में उपनयन संस्कार करने का विधान है

उपनयन का शब्दार्थ है उप=समीप, नयन= ले जाना | विद्या अध्ययन के लिए गुरु या आचार्य के समीप ले जाने को उपनयन कहा जाता है उपनयन का अर्थ है गुरु के समीप हो जाना |

गुरु शिष्य के प्रति कहता है

मम व्रतें ते हृदयं दधामि मम चित्तं अनुचित्तं ते अस्तु |

गुरु व्रत करके बालक को आश्वासन देता है कि तेरे हृदय को मैं अपने हृदय में लेता हूं तेरे चित्र को अपने चित्र में लेता हूं गुरु तथा शिष्य एक दूसरे के इतना निकट आने का यत्न करते हैं कि वे एक मना हो जाएं एक दूसरे के प्रति दुविधा में ना रहे इस संस्कार से बालक की बुद्धि का बहुत अधिक विकास होता है और वह बालक समस्त आधुनिक और वैदिक ज्ञान को प्राप्त कर लेता है और अपने जीवन में उच्च पदों पर आसीन होता है और समस्त संसार में प्रशंसा का पात्र बनता है इसीलिए उपनयन संस्कार अपने बालक का अवश्य करना चाहिए

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