विवाह उसको कहते हैं कि जो पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत द्वारा विद्या बल को प्राप्त तथा सब प्रकार से शुभ गुण कर्म स्वभावों में तुल्य, परस्पर प्रीति युक्तहोके निम्नलिखित प्रमाणे और अपने-अपने वर्णाश्रम के अनुकूल उत्तम कर्म करने के लिए स्त्री और पुरुष का संबंध होता है (महर्षि दयानंद सरस्वती )
विवाह शब्द वि उपसर्ग पूर्वक वह् प्रापणे धातु से यञ् प्रत्यय के योग से बना है जिसका अर्थ है विधि पूर्वक एक दूसरे को प्राप्त करके पारस्परिक जिम्मेदारियों का निभाना । विवाह करके दंपत्ति संतानोत्पत्ति तथा गृहस्थ के दायित्वों का निर्वाह करते हैं प्राचीन भारतीय परंपरा के अनुसार पितृ ऋण चुकाना भी विवाह का एक मुख्य प्रयोजन था माता पिता ने हमें जन्म दिया अनेक कष्ट उठाकर हमारा पालन-पोषण किया हमें सुख प्रदान किया ।