KARNVEDH SANSKAR/कर्णवेध संस्कार

कर्णभेद संस्कार: हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में नौवें संस्कार की विधि व महत्व.

16 संस्कारों में नौवां कर्णवेध संस्कार होता है। जब बच्चा छ महीने का हो जाता है उसके बाद 16 वें महीने तक कर्णवेध किया जा सकता है।

यानी कान छिदवाए जा सकते हैं। ये स्त्री और पुरुषों दोनों के लिए ये संस्कार बनाया गया है।

अच्छी सेहत के नजरिये से इस संस्कार की परंपरा बनाई गई है। इसके पीछे ये मान्यता है कि सूर्य की किरणें कानों के छेद से शरीर में जाकर बच्चों को तेजस्वी बनाती है।

कर्णवेध संस्कार करवाने से बच्चे बीमारियों से दूर रहते हैं।

एक्युपंक्चर विज्ञान के मुताबिक कान के जिससे हिस्से में छेद किया जाता है वहां एक्युपंक्चर पॉइंट होता है। जिससे सेहत अच्छी रहती है। वाराणसी के आयुर्वेदिक हॉस्पिटल के चिकित्सा अधिकारी वैद्य प्रशांति मिश्रा के मुताबिक, कान छिदवाने से रिप्रोडक्टिव ऑर्गन हेल्दी रहते हैं। साथ ही इम्यून सिस्टम भी मजबूत बनता है।

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