*"मृत्युंजय-महामंत्र का जप एवं पाठ"*
*(अपने जीवन, परिवार, समाज तथा राष्ट्र में सुमंगल सिद्धि हेतु)*
*ओं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मा अमृतात् ।।*
(ऋग्वेद-7/59/22)
भावार्थ- हम त्रिविधशक्तिस्वरूप, त्रिकालज्ञ एवं त्रिकालातीत त्र्यम्बक (त्रि/अम्बक) जगदीश्वर का यजन करते हैं। जो प्रभु जीवननिर्माता, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, प्राणिक एवं आत्मिक बलप्रदाता, सद्गुणों की सुगन्ध से सुवासितकर्त्ता एवं पुष्टिवर्धनविधाता हैं।
जैसे पका हुआ, रस से भरा हुआ, सुगंध से सुवासित, पुष्टिप्रदाता खरबूजा स्वतः अपनी डाल के बंधन से सहज विमुक्त हो जाता है।
उसीप्रकार पूर्णायु भोगकर,पौष्टिकशक्ति से सम्पन्न होकर एवं सद्गुणों की सुगंध से सुरभित होकर, ब्राह्मी स्थिति में स्थित हुआ मृत्यु के महाबंधन से मुक्त होकर (मृतकाया वाला)अमृतप्रभु की अमरता में अमृतरस (मोक्षानन्द)को प्राप्त करूँ।